Hindi Poem: Real Kasmir Story

Hindi Poem: Real Kasmir Story



काश्मीर जो खुद सूरज के बेटे की
रजधानी था

डमरू वाले
शिव शंकर की जो घाटी कल्याणी था

काश्मीर
जो इस धरती का स्वर्ग बताया जाता था

जिस
मिट्टी को दुनिया भर में अर्ध्य चढ़ाया जाता था

काश्मीर
जो भारतमाता की आँखों का तारा था

काश्मीर
जो लालबहादुर को प्राणों से प्यारा था

काश्मीर
वो डूब गया है अंधी-गहरी खाई में

फूलों की
खुशबू रोती है मरघट की तन्हाई में

ये
अग्नीगंधा मौसम की बेला है

गंधों के
घर बंदूकों का मेला है

मैं भारत
की जनता का संबोधन हूँ

आँसू के
अधिकारों का उदबोधन हूँ

मैं अभिधा
की परम्परा का चारण हूँ

आजादी की
पीड़ा का उच्चारण हूँ

इसीलिए
दरबारों को दर्पण दिखलाने निकला हूँ |
मैं घायल
घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

बस नारों
में गाते रहियेगा कश्मीर हमारा है

छू कर तो
देखो हिम छोटी के नीचे अंगारा है

दिल्ली
अपना चेहरा देखे धूल हटाकर दर्पण की

दरबारों
की तस्वीरें भी हैं बेशर्म समर्पण की

काश्मीर
है जहाँ तमंचे हैं केसर की क्यारी में

काश्मीर
है जहाँ रुदन है बच्चों की किलकारी में

काश्मीर
है जहाँ तिरंगे झण्डे फाड़े जाते हैं

सैंतालिस
के बंटवारे के घाव उघाड़े जाते हैं

काश्मीर
है जहाँ हौसलों के दिल तोड़े जाते हैं

खुदगर्जी
में जेलों से हत्यारे छोड़े जाते हैं

अपहरणों
की रोज कहानी होती है

धरती मैया
पानी-पानी होती है

झेलम की
लहरें भी आँसू लगती हैं

गजलों की
बहरें भी आँसू लगती हैं

मैं आँखों
के पानी को अंगार बनाने निकला हूँ |
मैं घायल
घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

काश्मीर
है जहाँ गर्द में चन्दा-सूरज- तारें हैं

झरनों का
पानी रक्तिम है झीलों में अंगारे हैं

काश्मीर
है जहाँ फिजाएँ घायल दिखती रहती हैं

जहाँ
राशिफल घाटी का संगीने लिखती रहती हैं

काश्मीर
है जहाँ विदेशी समीकरण गहराते हैं

गैरों के
झण्डे भारत की धरती पर लहरातें हैं

काश्मीर
है जहाँ देश के दिल की धड़कन रोती है

संविधान
की जहाँ तीन सौ सत्तर अड़चन होती है

काश्मीर
है जहाँ दरिंदों की मनमानी चलती है

घर-घर में
ए. के. छप्पन की राम कहानी चलती है

काश्मीर
है जहाँ हमारा राष्ट्रगान शर्मिंदा है

भारत माँ
को गाली देकर भी खलनायक जिन्दा है

काश्मीर
है जहाँ देश का शीश झुकाया जाता है

मस्जिद
में गद्दारों को खाना भिजवाया जाता है

गूंगा-बहरापन
ओढ़े सिंहासन है

लूले –
लंगड़े संकल्पों का शासन है

फूलों का
आँगन लाशों की मंडी है

अनुशासन
का पूरा दौर शिखंडी है

मै इस
कोढ़ी कायरता की लाश उठाने निकला हूँ |
मैं घायल
घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

हम दो
आँसू नहीं गिरा पाते अनहोनी घटना पर

पल दो पल
चर्चा होती है बहुत बड़ी दुर्घटना पर

राजमहल को
शर्म नहीं है घायल होती थाती पर

भारत
मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की छाती पर

मन करता
है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर

भारत के
बेटे निर्वासित हैं अपनी ही धरती पर

वे घाटी
से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर

जिनकी नाक
टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर

काश्मीर
को बँटवारे का धंधा बना रहे हैं वो

जुगनू को
बैसाखी देकर चन्दा बना रहे हैं वो

फिर भी
खून-सने हाथों को न्योता है दरबारों का

जैसे सूरज
की किरणों पर कर्जा हो अँधियारों का

कुर्सी
भूखी है नोटों के थैलों की

कुलवंती
दासी हो गई रखैलों की

घाटी आँगन
हो गई ख़ूनी खेलों की

आज जरुरत
है सरदार पटेलों की

मैं घाटी
के आँसू का संत्रास मिटाने निकला हूँ |
मैं घायल
घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

जब
चौराहों पर हत्यारे महिमा-मंडित होते हों

भारत माँ
की मर्यादा के मंदिर खंडित होते हों

जब क्रश
भारत के नारे हों गुलमर्गा की गलियों में

शिमला-समझौता
जलता हो बंदूकों की नालियों में

अब केवल
आवश्यकता है हिम्मत की खुद्दारी की

दिल्ली
केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैय्यारी की

सेना को
आदेश थमा दो घाटी ग़ैर नहीं होगी

जहाँ
तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी

जिनको
भारत की धरती ना भाती हो

भारत के
झंडों से बदबू आती हो

जिन लोगों
ने माँ का आँचल फाड़ा हो

दूध भरे सीने
में चाकू गाड़ा हो

मैं उनको
चौराहों पर फाँसी चढ़वाने निकला हूँ |
मैं घायल
घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

अमरनाथ को
गाली दी है भीख मिले हथियारों ने

चाँद-सितारे
टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने

इसीलियें
नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की

क्योंकि
ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की

अंतिम एक
चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को

गीदड़
कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को

हमको अपने
खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है

हमको अब
भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है

दुनिया के
सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते

भारत की
प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते

तीर अगर
हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे

जैसे ढाका
तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे

आँख मिलाओ
दुनिया के दादाओं से

क्या डरना
अमरीका के आकाओं से

अपने भारत
के बाजू बलवान करो

पाँच नहीं
सौ एटम बम निर्माण करो

मै भारत
को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ |
मैं घायल
घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||
डॉ. हरिओम
पंवार

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